पुलिस थाने में आज कुछ ज्यादा ही चहल पहल मची थी। कितना भी गुप्त रखने की कोशिश करने पर अल्ताफ की लाश मिली है वाली बात सारे हवालदार तक को मालूम चल गई थी। किसी खबरी हवालदार ने मीडिया में इसकी खबर कर दी थी और अभी थाने के टीवी पर उसका ही प्रसारण आ रहा था।
"क्या पुलिस हमसे कुछ छुपाना चाहती है? आखिर क्यों मुंबई पुलिस अल्ताफ जैसे रिढे आतंकवादी की लाश मिलने पर भी उसकी खबर लोगो तक पहुंचने नहीं दे रही? क्या राज़ है पुलिस का? आखिर क्या इस सनसनी में मुंबई पुलिस कमिशनर का हाथ है?" टीवी पर समाचार आ रहे थे।
सारा तंग माहौल अचानक से बिखर गया जब विजय सावंत को सब ने थाने के दरवाज़े पर खड़ा देखा। सब हवालदार अपने काम पर लग गए और सब इंस्पेक्टर साठे भी अपनी खुर्सी की ओर लपका। जैसे ही विजय उसके टेबल के आगे से गुजरा, साठे ने खड़े होकर सलाम भरी और कहा, "जय हिन्द, सर।"
"जय हिन्द।" विजय का जवाब आया।
विजय सीधा अपने कैबिन में गया और बेल मार के भोलाराम को बुलवाया। विजय सावंत साठे से ज्यादा विश्वास भोलाराम पर करता था और भोलाराम भी बदले में पूरी निष्ठा से विजय का साथ निभाता था। भोलाराम विजय के पिताजी की उम्र के थे और यही वजह थी कि विजय सावंत उन पर भरोसा करता था।
भोलाराम ने आकर अपनी एड़ियों पर ऊंचे होकर सलाम किया और सीधा चैर पर बैठ गया। ये दिखाता है कि भोलाराम और विजय के बीच काफी गहरी दोस्ती और आपसी समझ है। और कोई भी इस तरह विजय से बिना पूछे कुर्सी पर बैठ नहीं सकता था।
एक बार साठे ने भोलाराम की देखादेखी बिना पूछे बैठने की कोशिश की थी, ये सोचकर कि मेरा होद्दा तो भोलाराम से ऊपर है। उसी वक़्त विजय के तेवर दिखे थे। विजय ने बच्चन स्टाइल में साठे से कहा था, "जब तक बैठने को ना कहा जाय, शराफत से खड़े रहो, ये पुलिस स्टेशन है तुम्हारे बाप का घर नहीं!" उस हादसे के बाद कभी साठे ने ऐसी जुर्रत नहीं की।
भोलाराम ने कहा, "सर आप जानते ही है कि हमारे डिपार्टमेंट में ही कुछ फूटे हुए लोग है जो सारी अंदर की बात मीडिया तक पहुंचाते हैं।"
विजय ने कहा, "भोलाराम!! भोलाराम!! अभी मुझे इस बात की चिंता नहीं है कि मीडिया को पता चल गया है, बल्कि मुझे इस बात का पता करना है कि ये अल्ताफ यहां क्यों और क्या करने आया था।"
विजय को एक बात का पक्का यकीन था कि फूटे हुए पुलिसवालों से वो बाद में निबटेगा पर अभी जरूरी था अल्ताफ के बारे में पता लगाना। उसने जल्द से जल्द तहकीकात करने के लिए भोलाराम को सारी तैयारियों के लिए भेज दिया और कहा, "भोलाराम, आप जाकर चिर घर से पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट लेकर आइए, तब तक में आगे क्या करना है सोचता हूं।"
"जी, सर" कहते हुए भोलाराम ने बाहर का रास्ता लिया और इसी के साथ विजय सावंत अपने पुराने क्लासमेट अल्ताफ के बारे में सोचने लगा।
किसी को पता नहीं था कि जिस नैनीताल की शाला में विजय पढ़ा था उसी में अल्ताफ भी पढ़ता था। दोनों एक ही कक्षा में पढ़ते थे पर उस वक़्त से दोनों के बीच कुछ ज्यादा बनती नहीं थी। एक बात पर दोनों भिड़ते थे क्योंकि दोनों का दिल कक्षा कि एक ही लड़की पे आया था। लड़की का नाम प्रिया था और प्रिया का झुकाव ज्यादातर अल्ताफ की और रहा क्योंकि अल्ताफ काफी लड़ाई करता और हर बार मारपीट में जीत जाता। जब की विजय शांत स्वभाव का और कम बोलनेवाला लड़का था जिसकी अल्ताफ काफी मजाक बनाता था। अब उसी के मौत की तहकीकात विजय के हाथ में थी, ये शायद ही कोई संयोग हो सकता था।
जब आयुष ने होटल के टीवी में न्यूज देखी तो वो बीस मिनिट तक एक जगह पर गड़ गया। आयुष को यकीन नहीं हो रहा था कि उसने किसी आतंकवादी की लाश को ठिकाने लगाया था। अब आयुष को पक्का यकीन हो गया कि पुलिस मुझे पकड़े न पकड़े पर जरूर कोई आतंकवादी आकर उसका गेम बजा डालेगा। इसी डर में उसको याद ही नहीं आया कि बीस मिनिट पहले वो टेबल नंबर 11 का ऑर्डर लेकर निकला था और अब तक खाना ठंडा हो चुका था।
वो वापस किचन में घुसा और सोचने लगा कि किस तरह वो आतंकवादियों से अपना पीछा छुड़ाएगा अगर कोई उसका खून करने आएगा। कुछ ज्यादा ही सोच रहा था आयुष और तभी हरजीत सिंघ ने आकर उसको विचारों की तंद्रा में से जगाया।
ओय, तू वापस खड़े खड़े सो गया यार! गजब टैलेंट है यार आयुष तेरा! मेरे बच्चे एक काम कर तू किसी पिक्चर के लिए घोड़ा बनने का ऑडिशन दे और डायरेक्टर को बोलना की अगर खड़े खड़े सोते हुए घोड़े का शॉट लेना हो तो उसकी एक्टिंग के लिए में बेस्ट रहूंगा!" हरजीत सिंघ खुद के ही जोक पर खिखीयाने लगे और आयुष की पीठ पे एक धब्बा मार कर चल दिए।
आयुष की हालत पतली हो चुकी थी और उसके दिमाग में आतंकवादियों के ट्रेनिंग के दृश्य चल रहे थे। वो सोच रहा था कि उसको पकड़ने के बाद आतंकवादी उसे अपने कैंप पर ले जाएंगे जहां सब लोग बंदूक उठाकर दौड़ रहे होंगे और ट्रेनिंग ले रहे होंगे।
ये सब सोचते हुए उसने ऑर्डर लिया और भागा टेबल नंबर 11 पर जहां पर काफी देर से इंतजार करती हुई मोहतरमा बैठी हुई थी। मोहतरमा किसी की राह देख रही थी पर वो अभी तक आया नहीं था। मोहतरमा किचन की तरफ से आने वाले रास्ते की और पीठ करके बैठी थी और आयुष को इसी वजह से उसका चेहरा नहीं दिखा। जैसे ही वो घूमकर आगे की और आया और ऑर्डर टेबल पर रखने के लिए झुका उसका दिल एक क्षण के लिए रुका और जोर से धड़कने लगा। ये तानिया थी।
"पर वो इस होटल में क्या कर रही है!" आयुष फुसफुसाकर बोला।
"जी, कुछ कहा आपने!" तानिया इस तरह से आयुष को देख रही थी जैसे उसने पहले कहीं ये चेहरा देखा है।
आयुष ने सोचा कि अपनी पहचान बता देता हूं पर फिर अचानक से अपने फैंसले कि बदल दिया और पूछा, "मैडम, क्या आप और किसी का भी इंतजार कर रही हैं?"
तानिया ने जवाब दिया, "जी हां, मैं अपने फियांसे का इंतज़ार कर रही हूं, पर वो अभी तक आया नहीं है।"
इतना सुनते ही आयुष के पैरों तले से जमीन खिसकी और उसने सीधा बाथरूम का रास्ता लिया।
बाथरूम में घुसकर उसने आयुष सोचने लगा, "मेरी होटल में आकर मुझे पहचानती भी नहीं है और फियांसे के साथ डेट पर आई है। और ये भी गजब का फियांसे है जो डेट पर साथ आने की बजाय लड़की को पहले भेजकर उससे इंतज़ार करवा रहा है।"
"खैर, जो होना ही इन लोगो का, मुझे क्या!" कहते हुए आयुष अपने काम पर चढ़ गया पर उसके दिल में अब तानिया नाम का भवंडर उठ रहा था जो अब तानिया को भी अल्ताफ केस में खींचने वाला था।
आगे की कहानी अगले ब्लॉग में, जो कि अगले शनिवार को प्रकाशित किया जाएगा।
Episode 1: कमरा नंबर 210
Episode 2: टैक्सी आर. जे. 6025
Episode 3: पार्टी
Episode 4: कौन
Episode 5: तीन टुकड़े लाश के!