अध्याय ९: नकली गैराज

         इमाम की लैब उर्फ अड्डा उर्फ गैराज तक पहुंचते ही आयुष उन सब चीजों को गौर से देखने लगा, जो अब यहां से भागने में या इमाम से लडने में शायद कुछ काम में लग जाए। उसने कोने में रस्सी का ढेर देखा और साथ ही बाहर लगा हुए एक बड़ा सा बोर्ड देखा जिस पर लिखा था, इबादत गैराज। किसी नौसिखिए को ये पता ही न लगे कि गैराज अभी सुबह ही खड़ा किया गया है। इमाम ने अपनी लैब के बाहर ऐसे गैराज बनाया था कि मानो पिछले कई सालों से ये गैराज यहीं पर है। पर आयुष की निगाहें और दो-तीन बोर्ड को ढूंढ़ रही थी जिस पर इबादत गैराज लिखा हो। 


        'अगर ये गैराज पुराना है और कई सालों से यहीं पर है, तो दो या उससे ज्यादा बोर्ड लगे होने चाहिए' आयुष ने सोचा, 'और गैराज के बाहर ज्यादातर रोड के किनारे पर टायर का ढेर लगा होता है जिससे वहां से गुजरने वाली गाड़ियों को पता चले की यहां गैराज है। आयुष को टायर का ढेर कहीं पर भी नहीं दिखा। इमाम ने सब तैयारियां की थीं पर वो सिर्फ गैराज के अंदर। उसे ये नहीं पता था कि आयुष की निगाहें ये बात पकड़ लेगी की इबादत गैराज में ग्राहकों का ध्यान पकड़ने के लिए कोई व्यवस्था नहीं थी। 


        अब आयुष का शक धीरे धीरे यकीन में बदल रहा था। उसे शक तब हुआ जब उसने वो चिट्ठी देखी जिसमें उसे मारने का प्लान बनाया था और अब नकली गैराज देखकर उसका शक उसे सही लगने लगा। आयुष का गला सूखने लगा और इमाम की धड़कने तेज होने लगी। 


        अब वक़्त दूर नहीं था कि दोनों के बीच हाथापाई शुरू हो जाए। इमाम ने आते ही काम शुरू कर दीया और गाड़ी का बोनेट खोलकर उसके पीछे गाड़ी ठीक करने का नाटक करने लगा। इमाम ने बोनेट के पीछे छुपकर चाकू और रिवॉल्वर निकाली और अचानक ही बोनेट के पीछे से निकल कर रिवॉल्वर आयुष की और ताक दी। 


        लेकिन आयुष वहां खड़ा ही नहीं था जहां उसे होना चाहिए था। इमाम को अपना प्लान बिखरता हुआ दिख रहा था और अब वो किसी भी तरह आयुष के सर में सारी गोलियां उतारना चाहता था। उस छोटे से नकली गैराज में दो और गाडियां थी, उनमें से काले रंग कि गाड़ी के पीछे आयुष छिप गया था। आयुष के हाथ में भी एक सरिया था पर वो किसी काम का नहीं था। सरिया इतना पतला था कि चोट तो दे सकता था पर इमाम को घायल या मार नहीं सकता था, और जब आयुष की पहली चोट के बाद इमाम की बारी आने पर इमाम एक ही गोली में आयुष को स्वर्गवासी बना सकता था। इन सब पहलुओं को सोचने के बाद ही आयुष ने फैसला लिया था कि जब तक कोई हथियार न मिल जाय, छुपकर वार करना ही बेहतर होगा।


        अचानक गैराज में अंधेरा हो गया और इमाम ने गैराज का दरवाजा बंद कर दिया। अब आयुष और इमाम दो ही थे, और इमाम के हिसाब से आज गैराज में से कोई एक ही जिंदा बाहर निकलने वाला था। 


        आयुष जोर से चिल्लाया, 'मियां, मुझे नहीं मालूम कि तुम मेरे साथ ये क्यों कर रहे हो, पर ये जो भी हो रहा है, गलत है।'


        इमाम ने कहा, 'जब अपने पर आती है तो शेर सामना करता है और गीदड़ छुप जाता है, जान जाने की बात पे तुम्हारी फट रही है, तो मेरे अज़ीज़ दोस्त को मारने से पहले तुम्हें ये बात का खयाल नहीं आया?'


        आयुष को पलक झपकते ही सारा मामला समझ आ गया। उसने भी न्यूज में अल्ताफ की मौत के बारे में देखा था, पर इमाम को कैसे पता चल गया कि लाश को ठिकाने लगाने का काम आयुष ने किया था। 


        हिम्मत करके आयुष बोला, 'देखो इमाम, मुझे लगता है तुम्हें कोई गलतफहमी हुई है, मैंने तुम्हारे दोस्त अल्ताफ को नहीं मारा। मैं तुम्हें सारा मामला समजा सकता हूं।'


        इमाम ने कहा, 'गलतफहमी मुझे हो सकती है, मेरे लैब के मशीन को नहीं। मेरे पास मुंबई के हर आदमी का ब्लड ग्रुप और, और भी कई सारा डाटा है, सिवाय मेरे और अल्ताफ को छोड़कर। और तुम्हारी बैग में से टपका हुए खून किसी को मैच नहीं हो रहा था। जिसका मतलब है तुमने या तो मेरा खून किया है या फिर अल्ताफ का। अलबत्ता, मैं यहीं तुम्हारे सामने जिंदा मौत बनके खड़ा हूं तो जाहिर सी बात है कि वो लाश अल्ताफ की ही थी।' 


        आयुष बोला, 'इमाम मेरा यकीन करो, मैंने अल्ताफ को नहीं मारा!!!'


        'झूठ!!!' इमाम चिल्लाया जिसकी गूंज दो पल तक अंधेरे गराज में गूंजती रही।


        सारे बहाने करने के बाद अब आयुष ने अपने आखरी दाव को आजमाते हुए कहा, 'मियां, मुझे तो मार दोगे... पर जिंदगी भर ये नहीं जान पाओगे की अल्ताफ का खून किसने किया!!! मैं इतना जरूर बता दूं कि मैंने अल्ताफ की लाश को सिर्फ पटरी पर फेंका ताकि में इस केस में ना फंस जाऊं, और अब मैं एक ही जिंदा आदमी बचा हूं जिसने अल्ताफ की मौत के बाद सबसे पहले उसकी लाश को देखा था।' 


        अल्ताफ की लाश की बात पर अंधेरे में से रोने कि आवाज़ आई। इमाम अपने दोस्त के मौत की बात सुनकर रोने लगा था। आयुष समझ गया कि उसका दांव आखिर काम कर गया है। वो गाड़ी के पीछे से बाहर निकला और तभी अंधेरा बिखर गया और गैराज में रोशनी हो गई।


        रोशनी होते ही आवाज़ आया, 'फटाक...!फटाक...!' इमाम ने दो गोलियां आयुष को निशाने पर लेकर मारी। दोनों गोलियां आयुष के कान से ऐसी निकली की आयुष को तम्मर आ गए।


        आयुष वापस गाड़ी के पीछे घुसा और उसे वहां पर पड़े बॉक्स में से एक बड़ा सा पेंच मिला। उसने पेंच उठाया और धीरे-धीरे इमाम की और बढ़ने लगा। एक पल के लिए उसे लगा कि वो सामने से इमाम के हाथों मरने जा रहा है, पर अगले ही पल सोचा कि अगर को मुकाबला नहीं करेगा तो फोकट में मारा जाएगा।


        इमाम भी अपनी रिवॉल्वर लेकर आयुष को ढूंढ़ रहा था। आयुष ने गाड़ी के पीछे से कूदकर बोनेट पर पैर जमाया, इसी के साथ इमाम ने एक और गोली अपनी रिवॉल्वर में से दाग दी। गोली एक और बार बोनेट के नीचे लगी और आयुष ने भारी भरखम पेंच इमाम के सर पर दे मारा। 


        सब एक क्षण में हो गया और इमाम उसके ही गैराज में ढेर हो गया। अब आयुष का दिमाग ठनका की अगर ये मर गया, तो कल रात की तरह आज रात भी इसको ठिकाने लगाना पड़ेगा। वो तुरंत बोनेट पर से नीचे कुदा और इमाम की सांसें चेक की। सांस चल रही थी पर सर में से खून बह रहा था। पेंच खून से लथपथ होकर एक तरफ पड़ी थी।


        आयुष भागा और सबसे कोने में जो दरवाज़ा पड़ता था उसे खोलकर वह लैब के अंदर गया। उसे ये बात इमाम ने ही कही थी कि उसकी एक लैब भी है। लैब में से वो फर्स्ट-ऐड़ किट लेकर आया और उसे पट्टी करने लगा।


        इमाम को पट्टी कर देने के बाद, उसका खून पेंच पर से साफ कर दिया। इमाम अभी भी बेहोश पड़ा था। आयुष इमाम को वहीं छोड़कर चल दिया। 


        अचानक कुछ सुजते ही वो वापस आया और उसी चिट्ठी पर जिसपे उसका मौत का प्लान बना था उस पर कुछ लिखने लगा।


आइंदा ऐसी कोई हरकत मत करना जिस से मुझे तुम्हारे सर पर फिर एक बार पेंच मारनी पड़े। कल शाम पांच बजे मुझे आकर मरीन ड्राइव पर मिल, वहीं पर अल्ताफ की मौत के बारे में सब जानकारी दे दूंगा। 


        इतना लिख देने के बाद, वो चिट्ठी इमाम की जेब में रखकर आयुष वहां से चला और बाहर आते ही इतनी जोर से दौड़ा कि अभी उसको रेस में मैडल मिल जाए। आयुष तब तक दौड़ता रहा जब तक उसे यकीन न हुआ की अब इमाम उस पर गोली चलाएगा तो भी उसे नहीं लगेगी। 


        आगे की कहानी अगले ब्लॉग में, जो कि अगले शनिवार को प्रकाशित किया जाएगा।


Episode 1: कमरा नंबर 210 

Episode 2: टैक्सी आर. जे. 6025 

Episode 3: पार्टी 

Episode 4: कौन 

Episode 5: तीन टुकड़े लाश के!

Episode 6: अल्ताफ़ केस 

Episode 7: पोस्टमॉर्टम 

Episode 8: मौत का सामना!!!

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