"पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के मुताबिक अल्ताफ की मौत सर पे चोट लगने और काफी खून बह जाने की वजह से हुई है।" विजय ने रिपोर्ट को पढ़ते हुए कहा, "और इसमें ये भी लिखा है कि मौत करीबन ग्यारह घंटे पहले हुई है।"
"हमें लाश छ: बजे मिली थी और इस हिसाब से मौत का समय होगा अगले दिन के साढ़े सात और आठ के बीच।" भोलाराम ने अंदाज़ा लगाया।
विजय ने कहा, "एकदम सही अंदाज़ा लगाया, भोलाराम आपने। पर मुझे लाश से बरामद हुए सारे सबूत देखने है, और लाश भी!"
"जी सर, चलिए।" भोलाराम बोले, "लाश अभी भी मुर्दाघर में ही है, आप एक बार सब चेक कर लीजिए फिर अल्ताफ का अंतिम संस्कार करवा देंगे।
इंस्पेक्टर विजय और भोलाराम दोनों गाड़ी लेकर मुर्दाघर पहुंचे और ताकि अल्ताफ केस की छानबीन अल्ताफ की लाश से ही शुरू कर सके।
विजय और भोलाराम कॉरिडोर में चलते हुए एक रूम में पहुंचे जहां बड़े बड़े ड्रॉअर बनाए गए थे। यहीं ड्रॉअर में सब लाशे रखी जाती थी।
भोलाराम ने तीसरी कतार के आखरी ड्रॉअर को बाहर खींचा और साथ में ही लाश की बदबू ने विजय और भोलाराम की नाक में डेरा डाला। दोनों ने अपने नाक को जोर से बंद किया।
विजय अल्ताफ को देखने दो कदम आगे बढ़ा। ड्रॉअर के अंदर झांकने के बाद सोचा, "कितने खूंखार आतंकवादी का बदन अाज उसके सामने निश्चेत पड़ा है!!
विजय ने हाथ पर थोड़ा गौर किया क्योंकि वहां की चमड़ी का रंग थोड़ा गोरा था। विजय ने पूछा, "भोलाराम, क्या इसके हाथ पर से घड़ी बरामद हुई थी?"
भोलाराम बोले, "जी नहीं!!"
विजय ने कहा, "इतना तो तय है कि अल्ताफ घड़ी पहनता था, क्योंकि घड़ी वाली जगह बाकी की चमड़ी से अलग दिखाई पड़ती है। इसके दो ही मतलब हो सकते है, या तो वो घड़ी ले गया है या फिर वहीं रेलवे ट्रैक पर घड़ी कहीं खो गई है!"
भोलाराम ने आश्चर्य से पूछा, "वो मतलब कौन साब जी, कौन घड़ी ले गया है!!" भोलाराम काफी असमंजस में दिख रहा था।
विजय ने बोला, "भोलाराम, घड़ी हत्यारा ले गया है!"
"क्या साब आप भी...", भोलाराम हंसते हुए बोला, "ये सीधा सीधा आत्महत्या का ही तो केस है। आप क्यों इस केस को ज्यादा तोड़-मरोड़ रहे हो।"
"भोलाराम, आपको पता है अल्ताफ कौन था?" विजय ने भोलाराम से सवाल किया।
"सब को पता है, साब की ये बड़ा आतंकवादी था...अच्छा हुआ ना कि खुद ही मर गया, वरना आपकी रिवॉल्वर का ही शिकार था।" भोलाराम अभी भी मजाक के मूड में था।
विजय ने कहा, "भोलाराम, ये आत्महत्या का नहीं, हत्या का केस है, वरना इसने कैसे खुद का सर फोड़ा और कैसे खुद ही पटरी पे जाके लेट गया।"
"साब, पटरी पे लेट जाने के बाद भी तो सिर फुट सकता है ना" भोलाराम बोले, "ट्रेन से टकरा कर के!"
"नहीं, क्योंकि जब हमने लाश के तीन टुकड़े देखे तो सिर वाला भाग पटरी के बाहर था, दो पटरी के बीच उसका पेट था और दूसरी तरफ उसके पैर कटे पड़े थे।" विजय ने अपने अवलोकन का ब्योरा दिया। "किसी ने लाश को ठिकाने लगाने के लिए पटरी पर रखा था ताकि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में मौत की वजह ट्रेन से टक्कर कि आए। इसका ये भी मतलब है कि वो नौसिखिया है।"
भोलाराम ने कहा, "ये भी बात आपने सही कही, पर कौन हो सकता है जिसने अल्ताफ को मारने की हिम्मत की होगी?"
"ये पता लगाने की जिम्मेदारी विजय सावंत कि है" विजय शान से बोला, "और में ये पता करके रहूंगा!"
बाहर निकलते वक़्त भोलाराम कह रहा था, "कैसा जादू जैसा करते है ना ये डॉक्टर लोग सब, अभी तो सुबह हमने तीन टुकड़े देखे है और दोपहर तक तो तीन टुकड़े को इन डॉक्टर लोग ने जोड़ के आदमी बना दिया, नहीं साब!!!"
इधर इमाम की हालत खस्ता थी, जब उस पता चला कि लाश और किसी की नहीं बल्कि उसके जिगरी दोस्त अल्ताफ की थी। इमाम की लैब में सब का डाटा था, पर कभी खुद का और अल्ताफ का फिंगरप्रिंट और ब्लड सैंपल डाटा स्टोर करके रखे, ऐसा इमाम ने सोचा ही न था। ऐसी कभी नौबत ही न आई की अपना डाटा अपने लैब और कंप्यूटर में डालना पड़े।
इमाम अब आयुष की खोज में निकला ताकि अल्ताफ की मौत का बदला ले सके।
आयुष अपने होटल में तानिया से रूबरू हुआ पर तानिया ने उसे पहचाना ही नहीं था। आयुष ने खुद टेबल नंबर 11 के सारे ऑर्डर पूरे करने की जिम्मेदारी ली ताकि वो तानिया और उसके फियांसे पर नजर रख सके।
वैभव अब आ चुका था और तानिया के साथ बैठकर कुछ बाते कर रहा था। गोरा चेहरा, चौड़ी छाती और आंखो में चमक जिसे देखते ही समझ में आ जाए कि वैभव से पंगा नहीं ले सकते। उसने काला शर्ट और काला पैंट पहना हुआ था।
आयुष ने वैभव को देख कर ही अंदाज़ा लगा लिया की अब अगर तानिया उसे पहचानेगी तब भी अपना कोई चांस लगने वाला नहीं है।
आगे की कहानी अगले ब्लॉग में, जो कि अगले शनिवार को प्रकाशित किया जाएगा।
Episode 1: कमरा नंबर 210
Episode 2: टैक्सी आर. जे. 6025
Episode 3: पार्टी
Episode 4: कौन
Episode 5: तीन टुकड़े लाश के!
Episode 6: अल्ताफ़ केस