इमाम अपनी लेबोरटरी में कुछ परीक्षण कर रहा है, ताकि वो जान सके कि ये लाश दरअसल किसकी है! लैब पूरी अंधेरे से भरी हुई है और सिर्फ उसके कंप्यूटर का उजाला उसके चेहरे पर पड़ रहा है। एक अजीब सी गंध पूरे लैब में फैली हुई है पर लगता है इमाम को उससे कोई परेशानी नहीं है। डेस्क के एक तरफ माइक्रोस्कोप पड़े हैं जिनमें से ज्यादातर टूटे हुए हैं। एक बड़ा माइक्रोस्कोप, जो कि दिखने में महंगा है उसके अंदर स्लाइड दिख रही है। उसका ही परिणाम सीधा कंप्यूटर में दिख रहा है। उसने डीएनए टेस्ट का परिणाम भी निकालने के लिए टेस्ट शुरू कर दिया है। सुबह तक वो टेस्ट उसके डाटाबेस में से लाश को पहेचान लेगा। इमाम ने सारा डाटाबेस पुलिस रिकॉर्ड में से चोरी किया हुआ है। उसके पास जितना डाटाबेस है उतना शायद पुलिस के पास भी नहीं होगा।
इमाम बस ऐसे ही गहरी सोच में डूबकर बैठा है और स्क्रीन को ताक रहा है। आज रात उसे लेबोरेटरी के इसी कोने में गुजारनी होगी और तभी उसे लाश की पहचान मिलेगी।
दूसरी तरफ आयुष अपने दोस्तो के साथ बैठ के कुछ ड्रिंक ले रहा है पर उसका पूरा ध्यान उस बैग पर है।अचानक उसकी घड़ी ने बीप बीप का आवाज़ किया और दस बजने का संकेत दिया। वो तुरंत अपनी जगह से खड़ा हुआ और दोनों दोस्तों को अलविदा करके पार्टी से बाहर आ गया। वो दोनों कुछ बोले उस से पहले वो हॉल के बाहर था।
सीधा रिसेप्शन पर गया और उस लड़की से पूछा की क्या अब वो अपना सामान वापस ले सकता है?
रिसेप्शनिस्ट ने सोचा, "ये सबसे लेट आकर भी सबसे पहले पार्टी में से निकल गया! पार्टी में भी इसको मजा नहीं आया क्या? कितना बोरिंग इंसान होगा!"
यह सोचते हुए वो लगेज रूम की तरफ आयुष को लेे गई। वहां पहुंचते समय आयुष सोच रहा था कि अगर दुर्गंध आ रही होगी तो लाश को कैसे ले जाऊंगा?
लगेज रूम में घुसकर वो जरा-सा नीचे झुका ताकि बैग को सूंघ सके और जैसे ही लाश की गंध उसके नाक में घुसी उसका सर घूम गया। वो जोर जोर से कांपने लगा। फिर बैग लेकर बाहर आया जहां वो लड़की खड़ी थी।
आयुष की किस्मत की वापस आते समय उस लड़की को एहसाह ही न हुआ कि कुछ अजीब-सी गंध उसकी नाक में घुस रही है। आयुष ने अपने नाम के आगे हस्ताक्षर किए और बैग घसीटते हुए दरवाज़े कि ओर चलने लगा और जैसे ही दरवाज़ा खुला वो बैग लेकर भागने लगा।
अब समय था कि वो लाश को कहीं ठिकाने लगाए। क्योंकि वो इस तरह हर जगह लाश को लेकर नहीं घूम सकता था।
पास में ही रेल की पटरियां बिछी हुई थी और उसके दिमाग में एक विकृत विचार ने जन्म लिया। वह इस मुसीबत की जड़ में से छूटने के लिए कुछ भी करने को तैयार था। उसने एक रेल की पटरी पर जाकर बैग को खोला और लाश उसके अंदर से बाहर निकाली। उसके चेहरे को देखकर आयुष काफी डर गया।
लाश के चेहरे पर भी मौत से पहले के दर्द का एहसास प्रतीत हो रहा था। आयुष ने लाश को पटरी पर रख दिया और एक तरफ खड़ा हो गया।
आयुष खुद सोच रहा था कि को वह इतना निर्दयी कैसे हो सकता था! फिर सोचा की अगर वो निर्दयता नहीं दिखायेगा तो बुरा फसेगा। ये सब सोच ही रहा था कि दूर से ट्राम आती हुई दिखी और आयुष बैग उठाकर वहां से भागा।
अपने दिमाग में ये सोचते हुए चलने लगा कि अब तक तो लाश के तीन टुकड़े हो चुके होंगे और कल सुबह पुलिस को यही लगेगा की मृतक ने आत्महत्या की है। फिर खयाल आया कि बैग तो अब भी उसके पास है और उसका क्या किया जाए!
उसने दूर एक कचरे का ढेर देखा और वहां जाकर बैग को फेंक दिया। वापस चलके जब रोड पर आया तो ध्यान में आया कि अगर बैग किसी के हाथ लगी तो खेल खत्म!
ये सोचकर आयुष वापस कचरे के डिब्बे तक गया और बैग के साथ दूसरे कचरे को इकट्ठा किया। जेब में से लाइटर निकालकर पूरे कचरे के ढेर को बैग के साथ जला दिया।
जलते हुए ढेर को देखकर आयुष बोला, "कौन कमबख्त कहता है कि सिगरेट पीने का कोई फायदा नहीं होता!"
वहां से थोड़ी दूर चलकर एक टैक्सी पकड़कर आयुष अपने घर पहुंचा और घर पहुंचते ही चैन की सांस ली। अब उसे कल सुबह का इंतजार था कि कहीं पुलिस उसके दरवाज़े पर आकर खड़ी ना हो जाए।
उसकी मां ने कहा, "खाना लगा दूं क्या, बेटा?"
आयुष बोला, "नहीं, मै अब सो जाऊंगा और पार्टी में खाना खा लिया था।"
उसकी मां, जिनका नाम कुसुमदेवी था उन्होंने पूछा, "तो कैसी रही तेरी पार्टी? तान्या भी आई थी क्या पार्टी में!"
आयुष तान्या का नाम सुनके अचानक से अपने बिस्तर से खड़ा हो गया। उसने बात टालने के लिए सिर्फ इतना कहा, "पार्टी अच्छी थी, मुझे मज़ा आया और वहां पे आशीष और राहुल भी मिले थे।"
ये कहकर वो वापस बिस्तर पे लेट गया और आंखे बंद कर ली। उसे पता ही न चला कि कब विचारों के समुंदर में वो डूब गया और उसकी आंखे लग गई।
इमाम भी उसी विचारों के समंदर में था पर उसकी आंख नहीं लगी थी। ऐसा इसलिए था क्योंकी देश के प्रति उसका कुछ कर्तव्य था जो उसे अदा करना था।
रात के साढ़े तीन बजे स्क्रीन पर मैसेज आया कि उसके डाटाबेस के किसी डीएनए से सैंपल डीएनए मेल नहीं खा रहा है। स्क्रीन पे "नो मैच फाउंड" देखकर उसको गुस्सा आया और अपने बाल को जोर से खींचने लगा।
ना आयुष जानता था और ना ही इमाम पता लगा पाया कि लाश किसकी है, पर जब कोई भी पुलिसवाला सुबह में लाश को देखेगा, तुरंत पहचान लेगा की लाश किसकी है।
आगे की कहानी अगले ब्लॉग में प्रकाशित की जाएगी, जो कि अगले शनिवार को प्रकाशित होगा, तब तक धैर्य बनाए रखे।
Episode 1:कमरा नंबर 210
Episode 2:टैक्सी आर. जे. 6025
Episode 3:पार्टी