"साब, जब मैं पटरी पर लौटे के लिए जा रहा था तभी मैंने इसको यहां पर सोते हुए देखा! मुझे क्या पता था साब की ये लाश है। जब नजदीक आकर तीन टुकड़े देखे तब जाकर मैंने आपको खबर दी!" पटरी के पास वाली झोपड़ियों में रहनेवाला एक रहीश बोला।
सुबह सुबह वह आदमी अपने नित्यक्रम के लिए पटरी पर से लौटा लेकर जा रहा था तब उसने एक अनजान लाश देखी और उसे देखकर तुरंत उसने पुलिस में खबर कर दी।
अब तक तो सूरज निकल आया था और लाश के चारों और काफी भीड़ इकट्ठा हो गई थी। इंस्पेक्टर अभी तक घटनास्थल पर पहुंचे नहीं थे, पर हवालदार के हिसाब से अब वो किसी भी क्षण यहां पर पहुंचने वाले थे। हवालदार सारी भीड़ को नियंत्रित करने के लिए डंडे का इस्तेमाल कर रहा था पर जिज्ञासु प्रवृत्ति की भीड़ वहां से हटने का नाम नहीं ले रही थी।
जब उस बूढ़े आदमी ने सब हाल बताया की किस तरह उसने लाश को देखा और पुलिस को खबर दी तब हवालदार और दो पुलिसवाले घटनास्थल पर पहुंच गए।
हवालदार ने सुबह के अंधेरे में जब लाश के मुंह पर अपनी टॉर्च से प्रकाश डाला तब उसे समझ आया कि बड़ी मछली फसी है। उसने तुरंत इन्स्पेक्टर को फोन लगाया पर ये नहीं बताया कि लाश किसकी है। अगर बताया होता तो इंस्पेक्टर अगली मिनट तक तो घटनास्थल पर हाजिर होता।
हवालदार ने सोचा कि जब साहब यहां पर आ जाएंगे तो सारी बात बताऊंगा।
तभी एक पुलिस जीप वहां पर आ खड़ी हुई। इंस्पेक्टर सीधे अपने घर से घटनास्थल पर आया था। इंस्पेक्टर को देखते ही हवालदार भागा और इंस्पेक्टर के लिए जीप का दरवाज़ा खोला।
इंस्पेक्टर का नाम विजय सावंत था, जिसकी करीबन 30 साल की उम्र होगी। हट्टा-कट्टा नौजवान और फुली हुई बाहें और मुंह पर एक तरह का तेज जो उसे इंस्पेक्टर पद के लिए काबिल बनाता था।
विजय ने पूछा, "भोलाराम, इतनी सुबह किसकी लाश मिली है जो तुम मुझे फोन पर भी नहीं बता रहे थे।"
साब जी, अगर आप उसका मुंह देखेंगे तो आपको भी पता चल जाएगा कि किसकी लाश है।
विजय ने तुरंत अपने जीप का दरवाज़ा बंद किया और दौड़ते हुए लाश तक पहुंच गया। पूरी पटरी के आसपास दुर्गंध फैली हुई थी। विजय ने तुरंत अपने हाथरूमाल से मुंह को ढंक लिया। थोड़ा झुककर उसने लाश के मुंह को देखा तब पहली बार में विजय लाश को पहचान न पाया। एक बार जब उसने फिर लाश की नाक पर गौर किया तब उसका माथा ठनका।
उसने भोलाराम को नजदीक बुलाया और उसके कान में फुसफुसाया, "भोलाराम यार, ये लाश तो अल्ताफ की है!"
भोलाराम बोला, "इसीलिए तो साब मैंने आपको फोन पर कुछ नहीं बताया, बल्कि आपको सीधा यहां आने को कहा।"
भोलाराम, तुमने और किसको बताया है कि ये अल्ताफ की लाश है।
साब, अभी तक तो किसी को नहीं। हम तीन लोग और आप ही जानते हैं कि ये अल्ताफ है।
अच्छा, तो अभी तक सिर्फ पुलिस को ही पता है कि अल्ताफ की लाश हमें मिली है। अब एक काम करो लाश को यहां से हटवाओ, सीधा पोस्टमॉर्टम के लिए भेजो, भीड़ को भगाओ और सब से महत्वपूर्ण बात ये की मीडिया के किसी भी कुत्ते को अल्ताफ की गंध नहीं आनी चाहिए।
जी साब कहकर भोलाराम फटाफट काम पे लग गया। सब से पहले उस बूढ़े आदमी को रवाना किया और कहा कि अगर पुलिस स्टेशन से बुलावा आया तो तुरंत हाजिर हो जाय। फिर भीड़ को खाली किया और एम्बुलेंस बुलाकर लाश के टुकड़ों को चीर घर पहुंचा दिया।
ये सब करने में सुबह के नौ बज चुके थे और विजय सावंत घर पहुंचकर नहा-धोकर पुलिस स्टेशन पहुंचने के लिए अपनी बुलेट पर सवार हो चुका था।
आयुष भी उसी समय होटल में जाने के लिए अपने घर से निकला था। आयुष ने अंधेरी से बांद्रा की ट्राम ली और पहुंच गया हरजीत सिंह की होटल ब्लू रूम पर। वेटर्स रूम में जाकर वेटर का युनिफोर्म डाला और काम पर लग गया। उसके दिमाग में लाश के तीन टुकड़े घूम रहे थे। आयुष को जानना था कि अब कितना वक़्त बाकी रह गया है उसकी गिरफ्तारी में।
आगे की कहानी अगले ब्लॉग में, जो कि अगले शनिवार को प्रकाशित किया जाएगा।
Episode 1: कमरा नंबर 210
Episode 2: टैक्सी आर. जे. 6025
Episode 3: पार्टी
Episode 4: कौन