टैक्सी 'आर. जे. 6025' आज होटल ब्ल्यूरूम के बाहर काफी देर से खड़ी थी। टैक्सी ड्राइवर किसी को बिठाने के मूड में हो ऐसा नहीं लग रहा था, कई कस्टमर्स जो होटल में से निकल रहे थे उनके पूछने पर भी ड्राइवर मना कर रहा था कि उसे सवारी बिठाने में कोई दिलचस्पी नहीं है। दो तीन परिवार के लोग तो ये भी बुदबुदाते हुए गए की अगर सवारी लेनी नहीं है तो क्यों अपनी टैक्सी लेकर होटल के पास खड़ा है!!!
पर इमाम को सवारी की बजाय आयुष के बाहर निकलने में ज्यादा दिलचस्पी थी। उसकी योजना के मुताबिक वो पहले आयुष को टैक्सी में बिठाकर अपने अड्डे पर ले जाने वाला था। उसने ये भी सोच लिया था कि कैसे उसे अपने अड्डे पर जाने के लिए समझाएगा। उसने पहले से ही टैक्सी में ऐसी खराबी कर दो थी की थोड़े दूर जाकर टैक्सी बिगड़ जाए। उसके बाद वो आयुष को कहनेवाला था कि उसका खुद का गराज नजदीक में ही है। अगर आयुष की इजाजत हो तो वो गराज पर टैक्सी लेकर 15 मिनट में गाड़ी ठीक कर दे। और फिर आयुष को उसकी असली मंजिल तक पहुंचा दे।
बिलकुल इमाम की योजना के मुताबिक ही हुआ, जब आठ बजे आयुष अपनी ड्यूटी खत्म करके तानिया-वैभव प्रकरण को याद करते हुए बाहर निकला। इमाम कम से कम पिछले छह घंटे से उसका इंतज़ार कर रहा था। एक बार तो उसने आयुष को देखा भी जब आयुष तानिया और वैभव का पीछा करते हुए होटल के बाहर तक आया था। पर उस वक्त आयुष वैभव की मर्सिडीज देखकर ही वापस मूड गया और इमाम को अपने दोस्त अल्ताफ के प्रति कर्तव्य निभाने का मौका न मिला। पर इस बार गलती की कोई गुंजाइश नहीं थी। इस छह घंटे उसने एक ही प्लान को हजार बार दोहराकर, सभी तरह से तराश लिया था। आज शायद आयुष का आखरी दिन है ऐसा कोई भी सोचता अगर वो इमाम की योजना सुनता।
आयुष ने जैसे ही होटल के बाहर कदम रखा, टैक्सी सनसनाती हुई उसके आगे खड़ी हो गई। यही हरकत कल रात को भी हुई थी जब वो लाश लेकर बाहर निकला था। आज फिर वही टैक्सी और वही इमाम मियां को देखकर वो जल्दी से पीछे का दरवाज़ा खोलकर अंदर बैठ गया।
'अंधेरी ले लो, इमाम मियां।' आयुष बोला।
इमाम चौंक गया कि टैक्सी के इस अंधेरे में भी आयुष ने उसको पहचान लिया, अब योजना का अमल करने में कहीं कोई परेशानी न हो। उसे आयुष की अवलोकन शक्ति पर आश्चर्य हुआ, साथ ही उसे यकीन हो गया कि आयुष काफी चालाक और होशियार है। इसे मंजिल तक पहुंचाने के लिए काफी मेहनत लगेगी।
'जी अभी अपना बजरंग गियर लगाता हूं, और उड़ते हुए सीधे अंधेरी!!!अहा हा हा...' इमाम ने अट्टहास्य किया।
इमाम ने टैक्सी को आगे बढ़ाया और कुछ ही सेकंड में टैक्सी हवा से बातें करने लगी। अब मैन रोड आ गया था और काफी ट्राफिक था। अगर ट्राफिक में फस गया और टैक्सी ज्यादा गरम हो गई तो वो वहीं पर रुक जाएगी ऐसा डर इमाम के जहन में पैदा होने लगा था। उसने ऐसा तोड़ किया था कि टैक्सी थोड़ी गरम होते ही उसके अंदर के तार जल जाएंगे और टैक्सी रुक जाएगी। पर अगर ट्रैफिक में ज्यादा देर लगी तो टैक्सी कभी भी मैन रोड पर ही बंद हो सकती थी।
पर ये तो इमाम था जिसको ट्रैफिक से कैसे निपटना है, अच्छी तरह आता था। उसने टैक्सी सर्पाकार में दो वाहनों के बीच घुसा घुसाकर निकाली और आखिर उस सुनसान सड़क पर पहुंचा जहां पर अब टैक्सी बिगड़ने वाली थी। वहीं से इमाम का अड्डा करीबन दो मिनट की दूरी पर था। एक पेड़ के नजदीक आते ही टैक्सी हिचकोले खाने लगी और वहीं पर टैक्सी बंद हो गई। ये वही पेड़ था जिसे इमाम ने निशान के तौर पर छोड़ा था। उसकी योजना के मुताबिक इसी पेड़ के पास गाड़ी खराब होने वाली थी। अब इमाम को यकीन हुआ की, हो न हो किस्मत भी मुझसे अल्ताफ की मौत का बदला पूरा करवाना चाहती है।
आयुष ने आश्चर्य व्यक्त किया, 'कैसे इमाम मियां, आपकी ये उड़न तश्तरी बंद पड़ गई!!!'
'अरे, वो काफी दिनों से इसकी मरम्मत का मौका नहीं मिला। अगर आपकी इजाजत हो तो मेरा गराज यहीं से सिर्फ दो मिनट की दूरी पर है।' इमाम बोला, 'अगर टैक्सी वहीं ले जाकर मरम्मत करने के बाद आपको अंधेरी छोड़ आऊ तो आपको कोई ऐतराज़ तो नहीं!!'
इमाम एक एक शब्द सोचकर बोल रहा था। आयुष को भी उसकी चालाकी की भनक न लगी और उसने हां कर दी।
इमाम टैक्सी में से उतरा और टैक्सी को धकाने लगा। ये देखकर आयुष भी नीचे उतरकर इमाम को हाथ बटाने लगा।
इमाम के दिल में खयाल आया कि कैसा बेवकूफ आदमी है ये, जो अपनी ही मौत कि और खुद बढ़ रहा है। खुद ही अपनी मौत की वजह बन रहा है। तभी इमाम को याद आया कि जिस पर्ची में उसने आयुष के लिए योजना बनाई थी वो पर्ची उसकी जेब में नहीं थी।
टैक्सी को धक्का देते हुए अपनी पैंट की पिछली जेब और शर्ट की जेब टटोलकर देखी, पर पर्ची कहीं न मिली। इमाम ने सोचा शायद पर्ची उसके चोर जेब होगी और वहां पर पर्ची महसूस होने पर उसे सांस अाई। बहरहाल, यह एक ही पर्ची नहीं थी जिसमे इमाम ने योजना को दोहराया था बल्कि दूसरी एक पर्ची पीछे बैठे हुए आयुष को भी हाथ लगी थी।
आयुष नाम के बगल में बड़े अक्षर से मौत और खोपड़ी का चिन्ह देखकर उसके स्वभाव अब बदल चुके थे। वो किसी भी तरह इमाम को ये पता लगने नहीं दे सकता था कि उसकी सारी योजना आयुष को पता थी। दोनों एक दूसरे को मूर्ख समजकर आगे बढ़ रहे थे।
पर इमाम को पता था कि उसका पलडा भारी था, क्यों की आयुष चाहे इमाम को कितना भी मूर्ख क्यों न समझे, आखिरकार वो जा रहा है तो इमाम के अड्डे पर ही जहां इमाम ही आयुष पर भारी पड़ सकता है।
आगे की कहानी अगले ब्लॉग में, जो कि अगले शनिवार को प्रकाशित किया जाएगा।
Episode 1: कमरा नंबर 210
Episode 2: टैक्सी आर. जे. 6025
Episode 3: पार्टी
Episode 4: कौन
Episode 5: तीन टुकड़े लाश के!
Episode 6: अल्ताफ़ केस
Episode 7: पोस्टमॉर्टम