अध्याय १०: साज़िश

        'साब, एक आधी जली हुई बैग मिली है एक कचरे के ढेर में से, जिसके नजदीक ही रेल कि पटरी पर से हमें लाश बरामद हुई थी,' भोलाराम ने कहा।


        विजय बोला, 'उस बैग को फोरेंसिक जांच के लिए भिजवा दो, पर उससे पहले मुझे वो बैग देखना है! कहां पर है बैग?'


        भोलाराम ने उत्तर में कहा, 'बैग एविडेंस रूम में रखी हुई है!'


        विजय और भोलाराम एक साथ खड़े हुए और एविडेंस रूम की और चले। विजय ने देखा कि कुछ पुलिसवाले बाहर जमा हुई मीडिया को संभालने में लगे हुए थे।


        एविडेंस रूम में काफी सारे बक्से पड़े हुए थे, और एक बड़े से बक्से पर लिखा हुआ था, 'अल्ताफ़ केस''


        उसमें से भोलाराम ने बैग निकाली और विजय ने उसकी जांच शुरू की। विजय का नाक जैसे ही बैग तक पहुंचा उसे मालूमात हो गया कि, हो न हो इस बैग का और अल्ताफ के मौत के बीच कोई न कोई कनेक्शन जरूर है!!!


        उसने भोलाराम को बैग की तुरंत फोरेंसिक जांच करवाने को बोला और कहा, 'इस बैग में जो खून है वो अल्ताफ का ही है, बस हमें एक बार इसकी पक्की रिपोर्ट चाहिए ताकि तय हो जाए हम कोई ग़लत राह पर नहीं चल रहे!'


        भोलाराम फोरेंसिक कक्ष की और चला और विजय अपनी बुलेट बाइक निकाल कर क्राइम सीन की और निकल पड़ा।


        क्राइम सीन पर पहुंचते ही विजय ने सारी घटना को अपने दिमाग में पुन: रचित किया। वो खुद को खूनी की जगह रखकर सोच रहा था कि, 'अगर मैंने ये किया होता तो में कैसे इस घटना को अंजाम देता।'


        काफी देर तक पटरी पर इधर उधर घूमने के बाद जब उसने ट्राम के हॉर्न कि आवाज़ सुनी तो उसे वहां से हटना पड़ा। उसने अपनी बुलेट शुरू की और कुछ सोचते हुए वापस पुलिस स्टेशन की और जाने लगा।


        रास्ते में उसे ये तो पता चल गया कि जिसने भी लाश यहां पटरी पर फेंकी थी, वो कोई बड़ा हत्यारा नहीं था, क्योंकि बैग को पास ही कचरे के ढेर में फेंक देना उसकी अनुभवहीनता को दर्शाता था!!! जबकि बैग एक बड़ा सबूत बन सकता है। अगर हत्यारे को ये पता होता तो वो बैग को पास ही के ढेर में कभी न फेंकता।


        ये सब सोचते हुए जब को अपनी कुर्सी पर बैठा, तो दोपहर की नींद ने उसके ऊपर कब्जा जमा लिया और विजय तंद्रा में गिर गया।


        शाम के 5 बजे इमाम अपनी टैक्सी लेकर मरीन ड्राइव के चक्कर काट रहा था ताकि उसे आयुष की भेंट जल्दी से हो जाए। पूरे मरीन ड्राइव का तीन बार चक्कर लगाने के बाद भी जब इमाम को आयुष नहीं दिखा तो उसे यकीन हो गया कि आयुष ने उसे धोखा दिया है। साढ़े पांच बज चुके थे और अब इमाम आयुष को दबोचने की एक और साज़िश रच रहा था।


        इमाम ने अपनी टैक्सी सड़क के एक तरफ लगाई और अचानक गाड़ी के पिछले दरवाजे में से कोई टैक्सी के अंदर घुस गया। इमाम ने अचानक हड़बड़ी में पीछे देखा तो पता चला कि आयुष ने टैक्सी में प्रवेश किया है।


        आयुष ने कहा, 'इमाम, मुझे पता है तुम्हें अल्ताफ की मौत का बदला लेना है, पर वो में नहीं हूं जिसने अल्ताफ को मारा था। अल्ताफ की मौत का जिम्मेदार कोई और है, और अगर तुम चाहते हो तो उसे ढूंढने के लिए में तुम्हारी मदद कर सकता हूं!'


        आयुष एक एक शब्द सोचकर बोल रहा था। कहीं इमाम उसका खेल मरीन ड्राइव पर ही खत्म ना कर दे ये सोचकर। अब आयुष इमाम को मियां नहीं बल्कि सिर्फ इमाम कहकर ही बुला रहा है, ये बात समजते इमाम को भी देर न लगी!!!


        इमाम ने जवाब में कहा, 'मैं ये कैसे मान लूं कि ये तुमने नहीं बल्कि किसी और ने किया है?'


        'तुम्हारे पास और कोई रास्ता भी नहीं है!!!' आयुष बोला।


        'रास्ता है, रास्ते हैं!' इमाम फुसफुसाया, 'तुमको यहीं पे सुला दूं, ये भी तो एक रास्ता है!'


        'इससे तुम्हें ना कोई फायदा होगा और ना ही मेरा कोई नुक़सान!' आयुष बिना सोचे बोल गया। जबकि आयुष की मौत उसकी मां के लिए सबसे बड़ा नुक़सान साबित हो सकती थी।


        इमाम पीछे मुड़ के आयुष को देखने लगा और सोचा की, 'अजीब आदमी से पाला पड़ा है, जिसे मौत का डर नहीं!'


        इमाम एकदम गलत सोच रहा था। आयुष को इतना डर लग रहा था, पर डर का भाव आयुष की आंखो और चेहरे के अंदर कैद हुआ पड़ा था।


        इमाम ने अपना हाथ आगे बढाया और आयुष ने भी इमाम से हाथ मिला लिया। 


        इमाम ने कहा, 'अगर मुझे किसी तरह मालूम हुआ कि इस मामले में तेरा कोई कसूर है तो मेरी बंदूक की गोली पर तेरा नाम लिखा हुआ मिलेगा तुम्हें!'


        'अगर मेरा कोई कसूर होता न तो में कभी यहां तुमसे मिलने वापस ही ना आता!' आयुष ने जवाब दिया।


        'बढ़िया हैं फिर तो!!' कहते हुए इमाम की टैक्सी मरीन ड्राइव पर दौड़ने लगी ताकि लैब पर पहुंचकर जल्द-से-जल्द तहकीकात शुरू की जाए।


        आगे की कहानी अगले ब्लॉग में, जो कि अगले शनिवार को प्रकाशित किया जाएगा।


Episode 1: कमरा नंबर 210 

Episode 2: टैक्सी आर. जे. 6025 

Episode 3: पार्टी 

Episode 4: कौन 

Episode 5: तीन टुकड़े लाश के!

Episode 6: अल्ताफ़ केस 

Episode 7: पोस्टमॉर्टम 

Episode 8: मौत का सामना!!!

Episode 9: नकली गैराज 

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